संघर्ष की मिसाल: बचपन में खोई आंख, फिर भी नहीं टूटा हौसला, अल्मोड़ा की ममता बिष्ट बनी कृषि वैज्ञानिक

www.hillstime.in अल्मोड़ा। अल्मोड़ा। उत्तराखंड के अल्मोड़ा की ममता बिष्ट ने अपने हौसले और मेहनत की बदौलत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) में एग्रीकल्चरल साइंटिस्ट के पद पर चयनित होकर पूरे प्रदेश का नाम रोशन किया है। यह सफलता उनके लिए आसान नहीं थी। बचपन में उन्होंने अपनी एक आंख खो दी थी, लेकिन कभी भी अपने सपनों को मरने नहीं दिया। तमाम संघर्षों और बाधाओं के बावजूद ममता ने अपनी मेहनत और दृढ़ निश्चय से यह मुकाम हासिल किया। उनकी यह कहानी न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि उन लोगों के लिए एक मिसाल है जो कठिनाइयों के आगे हार मान लेते हैं।
डॉ. ममता बिष्ट वर्तमान में नीति आयोग के वॉटर एंड लैंड रिसोर्स वर्टिकल में कंसल्टेंट ग्रेड 1 के पद पर कार्यरत हैं। वह अल्मोड़ा के फालसीमा गांव की रहने वाली हैं और इन दिनों रामनगर में रह रही हैं। हाल ही में उनका चयन भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद में एग्रीकल्चरल साइंटिस्ट के पद पर हुआ है। ममता ने अपनी शिक्षा के शुरुआती कदम राजकीय इंटर कॉलेज, बैलपड़ाव से शुरू किए। इसके बाद उन्होंने स्नातक की पढ़ाई पी.एन.जी. पी.जी. कॉलेज, रामनगर से पूरी की। उन्होंने मास्टर डिग्री पर्यावरण विज्ञान में पंतनगर विश्वविद्यालय से प्राप्त की और 2024 में अपनी पीएचडी की डिग्री आईसीएआर-भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, पूसा, नई दिल्ली से पूरी की।

ममता का जीवन बचपन से ही संघर्षों से भरा रहा है। उनके पिता उत्तराखंड पुलिस में कुक के पद पर कार्यरत थे और मां गृहिणी थीं, जो परिवार चलाने के लिए बर्तन धोने का काम भी करती थीं। ममता का परिवार आर्थिक रूप से कमजोर था, लेकिन उन्होंने कभी भी इन परिस्थितियों को अपने सपनों के आड़े नहीं आने दिया। बचपन में एक आंख खोने के बावजूद, ममता ने हाई स्कूल में 80 प्रतिशत अंकों के साथ मेरिट में अपना नाम दर्ज कराया। उस समय उनके डॉक्टर बनने की खबर अखबारों में छपी थी।
ममता बताती हैं कि परिवार में सबसे बड़ी होने के कारण उन पर बहुत सारी जिम्मेदारियां थीं। अपने परिवार की आर्थिक स्थिति को देखते हुए उन्होंने अपने सपनों के साथ समझौता किया और कुछ वर्षों तक छोटे-मोटे काम किए ताकि परिवार पर बोझ न पड़े। उनके पिता हल्द्वानी की नवाबी रोड पर ठेला लगाते थे और ममता भी उनके साथ वहां काम करती थीं। इसके अलावा, उन्होंने बिंदिया चिपकाने, ऊनी स्वेटर बुनने और ट्यूशन पढ़ाने जैसे काम किए।
उनका बचपन बिल्कुल भी आसान नहीं था। ममता ने अपने परिवार के लिए संघर्ष किया और शिक्षा को अपनी प्राथमिकता बनाए रखा। उन्होंने कक्षा 10वीं से पीएचडी तक की पढ़ाई छात्रवृत्ति के माध्यम से पूरी की। उनका कहना है कि उनके माता-पिता और शिक्षकों ने हमेशा उनके सपनों को जिंदा रखा। ममता ने यह भी बताया कि उनके पिता ने कभी भी उन्हें पढ़ाई छोड़ने या अपने सपनों को पूरा करने से रोकने का प्रयास नहीं किया।

ममता के जीवन में एक और बड़ा झटका तब लगा जब साल 2016 में उनके छोटे भाई की एक बस दुर्घटना में मृत्यु हो गई। यह समय उनके और उनके परिवार के लिए बेहद कठिन था। समाज से भी उन्हें कई तरह के ताने सुनने पड़े। लोग उनके पिता से कहते थे कि तीन लड़कियां हैं, अब उनकी शादी कैसे होगी। लेकिन ममता के माता-पिता ने कभी भी इन बातों का असर अपने बच्चों पर नहीं पड़ने दिया। उन्होंने हमेशा ममता और उनके भाई-बहनों को प्रोत्साहित किया और शिक्षा के लिए प्रेरित किया।
ममता ने शिक्षा को ही अपनी शक्ति बनाया और कड़ी मेहनत की। उन्होंने बताया कि समाज के दबाव और आर्थिक तंगी के बावजूद उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी। उनके संघर्ष और मेहनत का नतीजा यह है कि आज वह एक वैज्ञानिक के रूप में अपनी पहचान बना चुकी हैं। उनके परिवार में आज तक कोई भी इतना पढ़ा-लिखा नहीं था, लेकिन ममता ने यह मुकाम हासिल कर दिखाया।
ममता का मानना है कि भगवान पर भरोसा और कड़ी मेहनत हर समस्या का समाधान है। उनका कहना है कि किसी भी परिस्थिति में अपने सपनों को नहीं छोड़ना चाहिए। उनके माता-पिता और शिक्षकों ने उन्हें हमेशा प्रेरित किया और यही कारण है कि वह अपने जीवन के सबसे कठिन समय में भी आगे बढ़ती रहीं।
डॉ. ममता बिष्ट की यह कहानी उन सभी लोगों के लिए प्रेरणा है, जो जीवन में संघर्ष करते हुए हार मान लेते हैं। यह कहानी यह भी साबित करती है कि अगर आपके पास मजबूत इरादा और मेहनत करने का जज्बा है, तो आप किसी भी बाधा को पार कर सकते हैं। ममता ने अपने सपनों को जिंदा रखा और उन्हें पूरा करने के लिए हर संभव प्रयास किया। उनकी यह उपलब्धि न केवल उनके परिवार के लिए गर्व का विषय है, बल्कि पूरे उत्तराखंड के लिए भी प्रेरणादायक है।
आज ममता बिष्ट न केवल एक वैज्ञानिक के रूप में सफल हैं, बल्कि अपने संघर्ष और सफलता की कहानी के माध्यम से उन लोगों को प्रेरित कर रही हैं, जो कठिनाइयों के आगे घुटने टेक देते हैं। उनका जीवन इस बात का प्रमाण है कि अगर आप कड़ी मेहनत करते हैं और अपने सपनों को पूरा करने का दृढ़ संकल्प रखते हैं, तो कोई भी बाधा आपको रोक नहीं सकती।