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दून मेडिकल कॉलेज में लापरवाही उजागर, मंत्री के परिजन तक को समय पर नहीं मिला इलाज

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देहरादून। राजधानी के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल दून मेडिकल कॉलेज की स्वास्थ्य सेवाओं में लापरवाही का गंभीर मामला सामने आया है। यहां इलाज में ऐसी कोताही बरती गई कि एक कैबिनेट मंत्री के 79 वर्षीय परिजन को कैंसर विभाग में न तो सही परामर्श मिला और न ही समय पर भर्ती किया गया। तीन दिन तक डॉक्टर टालमटोल करते रहे और स्थिति बिगड़ने पर अंततः मंत्री की पत्नी को खुद अस्पताल पहुंचकर गुहार लगानी पड़ी।

तीन दिन तक चलता रहा टालमटोल

मामला कैंसर विभाग का है, जहां परिजन इलाज के लिए पहुंचे थे। आरोप है कि विभाग के डॉक्टर लगातार टालमटोल करते रहे। मरीज की स्थिति गंभीर होने के बावजूद तीन दिन तक कोई ठोस परामर्श नहीं दिया गया और न ही समय पर भर्ती की प्रक्रिया पूरी की गई। मरीज और उनके परिजन असहाय होकर चक्कर काटते रहे, लेकिन विभागीय लापरवाही थमने का नाम नहीं ले रही थी।

अस्पताल प्रशासन ने जारी किए नोटिस

घटना की गंभीरता को देखते हुए दून मेडिकल कॉलेज के एमएस डॉ. आरएस बिष्ट ने 24 और 26 जुलाई को कैंसर विभाग के एचओडी डॉ. दौलत सिंह को नोटिस जारी किया और इस लापरवाही पर कड़ी नाराजगी जताई। इसके बाद एचओडी ने संबंधित डॉक्टर से जवाब मांगा। लेकिन डॉक्टर ने उलटे एचओडी से ही रेफरल लेटर और शिकायत पत्र की मांग कर दी। इससे यह साफ हो गया कि विभाग के अंदर समन्वय और कार्यशैली में भारी अव्यवस्था है।

मजबूरी में निजी अस्पताल का सहारा

हालात इतने खराब हो गए कि परिजनों को कुछ जरूरी जांचें और उपचार निजी अस्पताल से कराने पड़े। जबकि सरकारी अस्पताल में यह सुविधाएं उपलब्ध हैं। परिजनों का कहना है कि अगर समय रहते सही परामर्श और भर्ती मिल जाती तो मरीज की हालत बिगड़ती नहीं। आखिरकार, 4 अगस्त को मरीज को वरिष्ठ सर्जन डॉ. अभय कुमार के अधीन भर्ती कराया गया, जहां उनका 13 अगस्त तक इलाज चला।

मरीज की स्थिति बिगड़ने का जिम्मेदार कौन?

परिजनों का आरोप है कि शुरुआती दिनों में कैंसर विभाग की लापरवाही ने ही मरीज की हालत को और बिगाड़ दिया। तीन दिन तक टालमटोल ने उनके लिए स्थिति बेहद कठिन बना दी। मंत्री परिवार से जुड़े होने के बावजूद अगर इतनी बड़ी अनदेखी हो सकती है, तो आम मरीजों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है।

26 दिन बाद आई चेतावनी

सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि पूरे मामले के करीब 26 दिन बाद कैंसर विभाग के एचओडी ने विभागीय डॉक्टरों और कर्मचारियों को केवल चेतावनी नोटिस जारी कर इतिश्री कर दी। इस कार्रवाई से साफ झलकता है कि अस्पताल प्रशासन मामले को दबाने में अधिक रुचि रखता है, बजाय इसके कि दोषियों पर कड़ी कार्रवाई की जाए।

सरकारी अस्पतालों की स्थिति पर सवाल

यह मामला केवल एक परिवार का नहीं, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र की खामियों को उजागर करता है। दून मेडिकल कॉलेज राजधानी का सबसे बड़ा सरकारी अस्पताल है, जहां हर दिन हजारों मरीज इलाज के लिए आते हैं। लेकिन जब मंत्री के परिजन तक को समय पर इलाज और सही परामर्श नहीं मिल सका, तो आमजन के लिए स्थिति कितनी गंभीर होगी, इसका अंदाजा सहज लगाया जा सकता है।

सुधार की बजाय औपचारिकता

स्वास्थ्य सेवाओं में लापरवाही पर नोटिस और चेतावनी जैसे औपचारिक कदम उठाए जाते हैं, लेकिन जिम्मेदारों पर सख्त कार्रवाई नहीं होती। यही कारण है कि विभागीय अव्यवस्था जस की तस बनी रहती है। मरीजों की जान से खिलवाड़ करने वाली इस तरह की घटनाओं पर केवल चेतावनी देकर निपटा दिया जाना, अस्पताल प्रशासन की गंभीरता पर सवाल खड़े करता है।

👉 कुल मिलाकर, दून मेडिकल कॉलेज का यह मामला सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं की खस्ताहाल तस्वीर पेश करता है। जब वीआईपी परिवार तक को समय पर इलाज न मिल सके, तो आम जनता का भरोसा इन सेवाओं पर कैसे कायम रहेगा? यह सवाल अब सीधे सरकार और स्वास्थ्य विभाग के लिए चुनौती बन गया है।

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