उत्तराखंड सरकार का अभियान: “पिरूल लाओ, पैसा कमाओ”

उत्तराखंड में चीड़ के पिरूल को अब बहुउपयोगी बायोमास के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है। पहले यह व्यर्थ पड़ा रहता था, लेकिन अब इसके सही उपयोग से पर्यावरण, पशुधन, वन्यजीव और वन संरक्षण में मदद मिल रही है। उत्तराखंड सरकार इस दिशा में सक्रिय कदम उठाते हुए “पिरूल लाओ, पैसा कमाओ” अभियान चला रही है। इस अभियान का उद्देश्य पिरूल के संग्रहण और उपयोग को बढ़ावा देना है ताकि वनाग्नि की समस्या से निपटा जा सके और ग्रामीणों को आय का स्रोत प्रदान किया जा सके।
पिरूल का उपयोग और सरकार की योजना
वन विभाग ने पिरूल को पैलेट्स और ब्रिकेट्स बनाने के लिए उपयोग में लाना शुरू किया है। इसके लिए स्वयं सहायता समूहों की मदद ली जा रही है। विभाग प्रति क्विंटल पिरूल एकत्रित करने पर 300 रुपये का भुगतान करता है। बीते साल विभाग ने 38,299.48 क्विंटल पिरूल एकत्रित किया और इसके बदले 1.13 करोड़ रुपये से अधिक का भुगतान किया।
अब सरकार ने सात नई ब्रिकेट्स यूनिट स्थापित करने की योजना बनाई है, जिससे इनकी संख्या 12 हो जाएगी। ये नई यूनिट अल्मोड़ा, चम्पावत, गढ़वाल और नरेंद्रनगर वन प्रभाग में स्थापित की जाएंगी। इससे न केवल वनाग्नि की घटनाओं में कमी आएगी बल्कि स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर भी मिलेंगे।
पिरूल संग्रहण और रोजगार के अवसर
पिरूल का संग्रहण कर इसे भंडारण केंद्रों में रखा जाएगा। ग्रामीणों और युवाओं को इसके लिए 50 रुपये प्रति किलो का भुगतान किया जाएगा, जो सीधे उनके बैंक खातों में जमा होगा। संग्रहित पिरूल को पैक और संसाधित कर उद्योगों को बेचा जाएगा। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में आर्थिक लाभ होगा और वन संरक्षण में योगदान मिलेगा।
वनाग्नि रोकथाम में मददगार
वन विभाग के अनुसार, पिरूल संग्रहण से वनाग्नि की घटनाओं में प्रभावी कमी आई है। पिरूल बायोमास का उपयोग न केवल पर्यावरण संरक्षण में सहायक है, बल्कि यह गर्मियों में होने वाली वनाग्नि की घटनाओं पर भी लगाम लगाने में मदद करता है।
निष्कर्ष
उत्तराखंड सरकार का “पिरूल लाओ, पैसा कमाओ” अभियान एक प्रभावी कदम है, जो वन संरक्षण, पर्यावरण संतुलन और ग्रामीण क्षेत्रों के विकास को बढ़ावा देता है। यह योजना न केवल पर्यावरणीय सुरक्षा सुनिश्चित करती है बल्कि स्थानीय लोगों की आजीविका का भी समर्थन करती है।