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50 साल पुराने खंडहर में छिपा है सुकून और सफलता का राज

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उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित उर्गम वैली, जो कभी गाय-बकरियों को बांधने के लिए इस्तेमाल होने वाले खंडहरों के लिए जानी जाती थी, आज देश-विदेश के पर्यटकों को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। इस बदलाव की कहानी जुड़ी है एक युवा सचेंद्र पाल से, जिन्होंने अपनी मेहनत और दूरदर्शिता से यहां के एक वीरान मकान को एक खूबसूरत होमस्टे में बदल दिया।

आईटी की नौकरी छोड़ योगमात्र होमस्टे तक का सफर

साल 2015 में पुणे की एक आईटी कंपनी से अपनी नौकरी छोड़ने वाले सचेंद्र पाल ने ऋषिकेश में एक ट्रैवल कंपनी शुरू की। वह हमेशा से ऐसी जिंदगी चाहते थे, जिसमें सुकून और ठहराव हो। कोविड-19 महामारी के बाद 2020 में, सचेंद्र सुकून की तलाश में चमोली जिले की उर्गम वैली पहुंचे।

इस खूबसूरत घाटी में समय बिताने के बाद उन्होंने यहीं बसने का फैसला किया। लेकिन बिना किसी स्थायी आय के यह संभव नहीं था। एक दिन उनकी नजर एक 50 साल पुराने वीरान मकान पर पड़ी, जो किसी खंडहर से कम नहीं था। यही मकान उनके सपनों को साकार करने का जरिया बना।

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डेढ़ साल की मेहनत और जन्म हुआ ‘योगमात्र होमस्टे’ का

  1. सचेंद्र ने स्थानीय रहन-सहन और संसाधनों को समझने के लिए वैली के गांवों में समय बिताया।
  2. 50 साल पुराने मकान को लीज पर लेकर करीब पांच महीने में इसे एक खूबसूरत दो मंजिला होमस्टे में बदल दिया।
  3. 2022 में तैयार हुए इस होमस्टे में कुल 6 कमरे हैं, जहां 12 लोग आराम से रह सकते हैं।

होमस्टे की खासियत

  • योग और ध्यान का अनुभव: यहां आने वाले पर्यटकों को योग, ध्यान और ट्रेकिंग का अनुभव मिलता है।
  • घर का बना खाना: होमस्टे में ऑर्गेनिक सब्जियां, पहाड़ी राजमा, करेला, कद्दू और बद्री गाय के घी से बना शाकाहारी खाना परोसा जाता है।
  • प्राकृतिक सौंदर्य: वैली में चारों ओर पहाड़, झरने और बर्फ से ढके हिमालय के नजारे पर्यटकों का मन मोह लेते हैं।

आस-पास के दर्शनीय स्थल

  1. भूमियाल मंदिर: होमस्टे से 400 मीटर की दूरी पर।
  2. कल्पेश्वर महादेव मंदिर: 3 किमी की दूरी पर।
  3. आछा बच्चा और कल्पेश्वर झरने: प्राकृतिक जल स्रोत।
  4. ध्यान बद्री और गोरा देवी मंदिर: ऐतिहासिक स्थलों में शामिल।

सचेंद्र की अगली योजनाएं

  • ईको विलेज: पर्यावरण अनुकूल पर्यटन के लिए एक ईको विलेज बनाने की योजना।
  • ऑर्गेनिक खेती: बड़े स्तर पर जैविक खेती को बढ़ावा देना।
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सचेंद्र का कहना है कि जो चीजें पहाड़ों से विलुप्त हो रही हैं, उन्हें वापस लाने और यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को संरक्षित करने के लिए यह उनकी छोटी-सी कोशिश है।

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(यह लेख www.hillstime.in द्वारा प्रस्तुत किया गया)

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