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सूरज हत्याकांड: पूर्व IG जहूर जैदी समेत 8 पुलिसकर्मियों को उम्रकैद की सजा

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www.hillstime.in न्यूज़ डेस्क

गुड़िया दुष्कर्म और हत्या मामले से जुड़े सूरज हत्याकांड में चंडीगढ़ की सीबीआई अदालत ने सोमवार को ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए पूर्व आईजी आईपीएस जहूर हैदर जैदी समेत आठ पुलिस अधिकारियों और कर्मियों को उम्रकैद की सजा सुनाई। यह फैसला सीबीआई की विशेष जज अल्का मलिक की अदालत ने सुनाया।

सजा से पहले दोषियों की अपील

दोषियों ने सजा सुनाए जाने से पहले अदालत से रहम की अपील की। उन्होंने अपने सेवाकाल की ईमानदारी और पारिवारिक जिम्मेदारियों का हवाला देते हुए सजा में नरमी की गुहार लगाई। दूसरी ओर, सीबीआई के वकील अमित जिंदल ने आरोपियों के कृत्य को गंभीर बताते हुए कठोरतम सजा की मांग की। अदालत ने सभी पक्षों को सुनने के बाद दोषियों को विभिन्न धाराओं के तहत उम्रकैद की सजा सुनाई।

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किन दोषियों को सजा मिली?

सजा पाने वालों में पूर्व आईजी आईपीएस जहूर हैदर जैदी, तत्कालीन डीएसपी मनोज जोशी, पुलिस सब इंस्पेक्टर राजिंद्र सिंह, एएसआई दीप चंद शर्मा, सूरत सिंह, मोहन लाल, रफी मोहम्मद, और कांस्टेबल रनीत सतेता शामिल हैं। सभी दोषियों को आईपीसी की धारा 302, 201, 218, 330, 348, और अन्य धाराओं के तहत दोषी ठहराया गया था। इनमें से एक आरोपी एसपी डी डब्ल्यू नेगी को रिहा कर दिया गया।

क्या है सूरज हत्याकांड?

यह मामला 4 जुलाई 2017 को शिमला जिले के कोटखाई से शुरू हुआ, जब 16 वर्षीय छात्रा लापता हो गई। कुछ दिन बाद छात्रा का शव जंगल में मिला। घटना ने राज्य में आक्रोश पैदा कर दिया। जांच के लिए तत्कालीन आईजी जहूर हैदर जैदी की अध्यक्षता में एसआईटी का गठन हुआ।

एसआईटी ने मामले में सात आरोपियों को गिरफ्तार किया था। इन्हीं में से एक नेपाली युवक सूरज की 18 जुलाई 2017 को पुलिस हिरासत के दौरान कोटखाई थाने के लॉकअप में मौत हो गई। आरोप लगाया गया कि सूरज को पुलिस ने प्रताड़ित किया था, जिससे उसकी मौत हुई।

सीबीआई जांच और खुलासे

मामले की जांच सीबीआई को सौंपी गई। जांच में खुलासा हुआ कि सूरज की मौत पुलिस प्रताड़ना के कारण हुई थी। सीबीआई ने पाया कि पुलिस अधिकारियों ने इस मामले में साक्ष्य मिटाने और गुमराह करने की कोशिश की। इसके बाद सीबीआई ने आईजी जैदी समेत अन्य पुलिसकर्मियों के खिलाफ हत्या और सबूत मिटाने जैसी गंभीर धाराओं के तहत केस दर्ज किया।

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न्याय की दिशा में ऐतिहासिक कदम

इस फैसले ने पुलिस तंत्र में पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता को रेखांकित किया है। सूरज हत्याकांड को लेकर जनता में लंबे समय से आक्रोश था, और इस फैसले ने पीड़ित परिवार को आंशिक न्याय प्रदान किया।

यह मामला न केवल हिमाचल प्रदेश बल्कि पूरे देश के लिए एक महत्वपूर्ण उदाहरण है कि किसी भी स्थिति में कानून से ऊपर कोई नहीं।

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